नागरिकता संशोधन कानून 2019 पूरे देश में लागू हो गया है। 11 मार्च को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर दी गयी है। 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए इसे लागू कर दिया है । जिससे सियासी जंग शुरु हो गई है । ऐसे में सीएए के सभी पक्षों के बारे में जानना बहुत जरूरी हो जाता है ।
सबसे पहले बता देते है कि सीएए को 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था जो कि लोकसभा से पास हो गया था लेकिन राज्यसभा से पारित नहीं हो पाया था ।
उसके बाद सरकार ने फिर से इसे 2019 में पेश किया जो कि दोनों सदनो से पारित हो गया । फिर जनवरी 2020 में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी थी । कई लोगों ने इसका विरोध किया और कोरोना महामारी के कारण यह लागू नहीं हो सका ।
अब सरकार ने 2024 में इससे जुड़े नियमों कि अधिसूचना जारी कर दी है ।जिसमें नागरिकता देने की प्रक्रिया को बताया गया है। कैसे आवेदन करना है , कौन- कौन से दस्तावोज चाहिए यह सब इसमें बताया गया है ।यह पूरी प्रक्रिया आनलाइन माध्यम से होगी जिसके लिए सरकार ने एक पोर्टल भी लांच किया है।
अब जान लेते है किसे मिलेगी नागरिकता
नागरिकता संशोधन अधिनियम,2019 के तहत 3 पड़ोसी देश बांग्लादेश , पाकिस्तान और अफगानिस्तान के 6 धर्मों हिंदू ,सिख ,बौद्ध ,जैन,पारसी और ईसाई प्रवासियों को ही नागरिकता प्रदान की जाएगी ।
केवल उन लोगों को ही नागरिकता दी जाएगी जो कि इन 3 देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए है और भारत में आ गए है। इसके अलावा 31 दिंसबर 2014 से पहले भारत आए प्रवासियों को ही नागरिकता के लिए पात्र माना जाएगा।
संविधान की छठी सूची में शामिल राज्यों और इनर लाइन परमिट वाले क्षेत्रों पर सीएए लागू नहीं होगा।
सीएए की आलोचना
सीएए के लागू होते ही विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया है। इस को लेकर यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है जो समानता के अधिकार की गांरटी देता है।साथ ही यह कहा जा रहा है कि यह इन तीनों देशों के मुस्लमानों को भी शामिल नहीं करता है जो की पक्षपात पूर्ण है । इसमें भारत की सीमा से ही लगते नेपाल , भूटान और म्यांमार जैसे देशों को भी शामिल नहीं किया गया है। इसके अलावा यह 15 अगस्त 1985 में भारत सरकार और असम आंदोलनकारियों के बीच हुए असम समझौता का उल्लंघन करता है। जिसमें बांग्लदेश से आए प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए कटऑफ डेट 24 मार्च 1971 थी । वर्तमान में सीएए के अंतर्गत यह समयसीमा 31 दिंसबर 2014 तय की गई है ।
वही दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि सीएए अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है । इससे किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता को कोई खतरा नहीं है । किसी भी भारतीय मुसलमानों की नागरिकता नहीं छीनी जाएगी । इसके तहत केवल लंबे समय से अप्रवासी के रूप में रह रहे लोगों को नागरिकता दी जाएगी। वहीं केवल 6 धर्मों को शामिल करने के पीछे यह तर्क है कि इन 6 धर्मों का भारत से सभ्यतागत संबंध रहा है।यही लोग तीनों देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए है ।ऐसे में सरकार वैधानिक रूप से नागरिकता प्रदान करने का प्रवधान लेकर आई है ।
हालांकि विपक्ष ने सरकार की आलोचना की है । वहीं कई याचिकाएं भी सप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। यह समय ही बताएगा सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या फैसला लेता । यह अधिनियम संविधान की कसौटी पर खड़ा होता है या नहीं।
Write a comment ...