साक्षात्कार (कॉप 28) - भारत ने अपनी चुनौतियों को अवसर में बदला है

प्रश्न 1 - कॉप 28 की इस वर्ष की वार्ता में जीवश्म ईंधन के प्रयोग को पूरी तरह से हटाने पर बात हुई है। यह लक्ष्य कितना व्यवहारिक है ?

आशीष सुमन-  यह कितना व्यहारिक है या नही यह एक जटिल प्रश्न है। इसके पीछे कारण है कि हमारे पास संसाधन की उपलब्धता कितनी है। आज के समय में पूरे विश्व की 80% उर्जा आपूर्ति को जीवश्म ईंधन ही सुनिश्चित करता है।ऐसी स्थिति में जीवश्म ईंधन का प्रयोग पूरी तरह बंद करना निकट भविष्य में संभव नजर नहीं आता है।

बात जब नवीकरणीय उर्जा की होती वहां पर उसकी उपलब्धता और उसको बनाने का सामथर्य एक महत्वपूर्ण पक्ष है। इसको स्टोर करना और लोगों तग पहुचांना एक खर्चीली प्रक्रिया है। जिसमें सरकार द्वारा सब्सीडी उपलब्ध करवायी जा रही है लेकिन फिर भी यह उतना प्रभावी साबित नहीं हो रहा है। महंगा होने के कारण आम नागरिक इसको अपना नहीं रहे है यह एक महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 2- इस वर्ष कॉप 28 में नवीकरणीय उर्जा को तीन गुना करने पर सहमति बनी है । इस पर विस्तार से बताइए ?

आशीष सुमन-  कॉप 28 में नवीकरणीय उर्जा 3 गुना करने पर जो बात हुई है जो कि दुबई एनर्जी पेक्ट के तहत कही गयी है । इसके तहत  2030 तक नवीकरणीय उर्जा के प्रयोग को तीन गुना करने का लक्ष्य रखा गया है। इस पेक्ट के तहत एनर्जी ट्रांसजिसन और उर्जा दक्षता की बात कही गयी है जिसके तहत इसे 2 गुना करने का लक्ष्या है। उदाहरण के लिए जो कार्य 5 यूनिट मे हो रहा है उसे 2.5 यूनिट मे करने का लक्ष्य है। इसके लिए कई नयी तकनीकों पर काम हो रहा है। दुबई मे ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रीक वहनों के प्रयोग को बढ़ाने पर जोर दिया गया है। बात करे भारत मे तो फेम -2 जैसी योजनाएं है जिसके तहत सबसिडी दी जा रही है। दुबई एनर्जी पेक्ट को कॉप 28 सम्मेलन का सबसे सफल आयाम कह सकते है ।

प्रश्न 3-  सम्मेलन में कोयले के उपयोग कम करने को लेकर प्रस्ताव लाया गया । इसमें भारत सहित सभी विकासशील देशों का क्या रूख रहा ?

आशीष सुमन-  कॉप 28 मे कोयले को फेज आउट करने का प्रस्ताव लाया गया लेकिन अंतिम समय में शब्दों में हेरफेर कर दिया गया जिसमे फेज आउट को फेज डाउन कर दिय गया । बात जब विकासशील देशों की आती है तो इसमे तीन संभावनाएं हो सकती है। पहला तो ये कि विकासशील देश इसे पूरी तरह से नकार दे क्योंकि विकसित देशों ने प्रकृति का जमकर दोहन किया और मुनाफा कामया लेकिन जब बात जलवायु परिवर्तन की आती है तो सारी जिम्मेदारी विकासशील देशों पर डाल दी जाती है। दूसरा तर्क है कि विकासशील देश विकसित देशों के साथ सांमजस्य बनाए। जिससे की नवीन तकनीकों का हस्तांतरण किया जाए जिससे स्थिति को सुधारने की ओर सकरात्मक प्रयास किया जा सके । तीसरा तर्क है कि विकासशील देश सक्रिय भूमिका निभाये और इसको लीड करे । यहा मुख्य  समस्या यह है कि भारत और चीन जैसे देश आम नागरिकों की जरूरत को पूरा किये बिना इसमें सक्रिय भूमिका नहीं निभा सकते है।

   कुल मिलाकर दूसरी संभावना ही संभव नजर आ रही है जहां विकसित और विकासशील देश संतुलन बनाकर सहयोग करें।

 प्रश्न 4- हर वर्ष मीथेन उत्सर्जन से पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर चर्चा होती है जो कि इस वर्ष भी हुई। इस पर आपके क्या विचार है ?

आशीष सुमन-  ग्रीनहाउस गैस के कारण जो गलोबल वार्मिंग होती है उसका तकरीबन एक तिहाई फीसदी हिस्सा मिथेन के द्वारा होता है। कार्बन  डाइआक्साइड की जो वार्मिंग क्षमता है उसका 80 टाइम्स मीथेन गर्म करने की क्षमता रखता है। पहले इसे लेकर अधिक चिंता नहीं थी लेकिन अब इसके कई दूरगामी प्रभाव नजर आ रहे है। कॉप 26 में वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा ली गई जिसमें 100 से ज्यादा देशों ने मीथेन उत्सर्जन 2030 तक 30 % कम करने पर सहमति जताई हालांकि कई मुख्य उत्सर्जक देश जैसे भारत, चीन इसका हिस्सा नहीं है। साथ ही 49 तेल कंपनियों के समूह ने भी वर्ष 2030 तक शून्य मीथेन लीक का संकल्प लिया है। कुछ सरकारों, समाजसेवियों और निजी कंपनियों द्वारा मीथेन एक्शन फंड की घोषणा की जिसके तहत अगले 5 वर्षों मे $ 1 बिलियन खर्च किए जाएगें । मेरे अनुसार यह एक सकरात्मक प्रयास है।

प्रश्न 5- पिछले साल आर्थिक सहयोग के लिए के बनाए गए लास  डैमेज फंड को लेकर क्या इस वर्ष कोई प्रगति हुई है ?

आशीष सुमन-  लांस एंड डैमेज फंड का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण , गरीब देशों और संस्थाओं को हुई क्षति की भरपाई करना है। इस वर्ष इसमे कुछ प्रगति हुई है जिसमे लगभग $ 700 मिलियन फंड देने का वादा किया गया है । यूएई ने $ 100 मिलियन  देने की घोषणा किया है । साथ ही यूके , यूरोपियन यूनियन जैसे अन्य देशों ने भी आर्थिक सहायता की घोषणा की है । इस वर्ष की यह घोषणा दर्शाती है कि विकसित देश अपनी जिम्मेदारी को समझ कर इसकी भरपाई की कोशिश कर रहे है जो कि सकरात्मक प्रयास है ।

प्रश्न 6- क्या 28वीं वैश्विक जलवायु परिवर्तन वार्ता धरती को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के प्रयासों में प्रभावी साबित होगी ?

आशीष सुमन-   कॉप सम्मेलन हो पेरिस समझौता या फिर रियो डि जिनेरो का अर्थ समिट इन सभी का मुख्या उद्देश्य सभी हितधारकों को एक साथ लाना है जिसमें ये सफल साबित हुआ है। साथ ही इसको धरातल पर लागू करने में भी कुछ प्रगति हुइ है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है। पूरी दुनिया में नवीकरणीय उर्जा और उर्जा दक्षता के निर्माण काफी काम हुआ है । भारत ने भी बिजली उत्पादन क्षमता में भी अच्छी प्रगति की है । भारत ने अपने लक्ष्यों को तय समय से पहले ही प्राप्त किया है। भारत ने वर्ष 2030 तक 50 % उर्जा को नवीकरणीय स्रोत से पूरे करने का लक्ष्य रखा है । इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की बिक्री मे बढ़ोतरी हुई है। आम लोग भी इसमें दिलचस्पी दिखा रहे है। कई जगह में कॉप -28 प्रभावी साबित नही हुआ है चाहे वह लॉस एंड डैमेज फंड या फिर पारदर्शिता और जवाबदेही की बात हो उसमे ये खड़ा नहीं उतरा है।

प्रश्न 7- क्या आपको लगता है कि विकसित और अमीर देश जो कि कार्बन के  सबसे बड़े उत्सर्जक है अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन कर रहे है ?

आशीष सुमन-   यह भी एक जटिल प्रश्न है। जिम्मेदार क्या है कितनी इसे परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि ये एक व्यक्तिपरक प्रश्न है। एक तर्क दे सकते है कि विकसित देश जितना इसमें योगदान दे सकते उतना काम कर रहे है।उदाहरण के लिए लांस एंड डैमेज फंड मे भी विकसित देशों ने सबसे ज्यादा योगदान दिया है हालाकिं यह सहायता पर्याप्त नहीं है। अमेरिका मे कहा कि 2005 के मुकाबले वर्ष 2030 तक 50 %  उत्सर्जन को कम कर देगे  । विकसित देशों के नजरिये से वे प्रयास कर रहें लेकिन मेरा निजी मत के अनुसार यहा प्रयास पर्याप्त नहीं अभी और अधिक करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 8- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कुछ बड़े  कदमों को विस्तार से बताइए ?

आशीष सुमन-   हम लोग जब बात भारत की करते है तो इस मे ध्यान देना होगा कि भारत की अपनी कुछ मूलभूत आवश्यकाएं है। जरूरतें है गरीबी को कम करना, असमानता को कम करना और साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन वार्ताओं मे जिम्मेदार देश होने के नाते अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन करना । इनके बीच में सांमजस्य स्थापित करते हुए सतत पोषणीय विकास के लक्ष्यों ( आर्थिक , समाजिक और पर्यावरण )  को हासिल करना है। वर्ष 2047 के भारत के लिए प्रधानमंत्री मोदी का जो विचार है वह तीनों के बीच सांमजस्य स्थापित करना है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2021 के बीच सांमजस्य स्थापित करते हुए सतत पोषणीय विकास के लक्ष्यों को हासिल करना है । वर्ष 2047 के भारत के लिए प्रधनमंत्री मोदी का  जो विचार वह तीनों के बीच सांमजस्य स्थापित करना है । एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2021 को बीच में करीब 13.5 करोड़ लोगों को भारत ने गरीबी से बाहर निकाला है। नीति निर्माता इस दिशा मे काम कर रहे है । इसी के तहत नेशनल एकश्न प्लान फॉर कलाइमेट चेंज लाया गया है जिसके अंतर्गत 8 मिशनों की बात की गयी है। किसी भी पर्यावरण सम्मेलन के उर्जा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रहता है क्योंकि उत्सर्जन में सबसे ज्यादा योगदान जीवाश्म ईंधन का है। इसलिए नवीकरणीय उर्जा की और बढ़ना अत्यन्त आवश्यक है। यहां पर भारत को एक सांमजस्य बनाने की जरूरत जिससे आम नागरिकों जरूरतों को पूरा करते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए भी काम करना होगा ।

प्रश्न 9 - भारत के सामने कौन-कौन सी बड़ी चुनौतियां और उन से निपटने के लिए भारत किस रणनीति पर काम कर रहा है ?

आशीष सुमन-   यहां पर बात भारत की हो या फिर किसी भी देश की तो मूलभूत समस्याएं एक जैसी है। आर्थिक प्रगति और पर्यावरण स्थिरता के बीच सांमजस्य कैसे स्थापित किया जाए। उर्जा की मांग लगातार बढ़ती जा रही है । भारत सरकार नवीकरणीय उर्जा के प्रयोग को प्रोत्साहित कर रही है चाहे वह हाइड्रोजन उर्जा , इलेक्ट्रानिक वाहनों के साथ ही उत्सर्जन कम करने के लिए कानून बनाए जा रहे है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या जलवायु वित्तपोषण की इसमें लास एंड डैमेज फंड और कलाइमेट फंड की बात ती जाती है । पूरे विश्व के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है कि फंड को वैश्विक और घरेलू स्तर पर कैसे प्रबंधित किया जाए । नयी तकनीक के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। कई जगह पर भारत ने अपनी चुनौतियों को अवसर मे बदला है।

प्रश्न 10- भारत ने 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है , भारत कैसे इसे हासिल करेगा और किस तरह आगे बढ़ रहा है उस पर विस्तार से बताइए ?

आशीष सुमन-    भारत ने अपना नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य 2070 तक रखा है। इसके संदर्भ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पंचामृत जलवायु लक्ष्य है। इसका एक लक्ष्य 2030 तक 50% उर्जा की जरूरत नवीकरणीय उर्जा से करने का है । भारत लगातार इलेक्ट्रानिक वाहनों को खरीदने  के लिए आम जनता को प्रोत्साहित कर रहा है ।भारत ने 2005 से 2019 को बीच अपने सकल घरेलू उत्पाद मे उत्सर्जन तीव्रता को 33 तक सफलतापूर्वक कम कर लिया है, जिसे 2030 के प्रारंभिक एनडीसी  लक्ष्य को निर्धारित समय रे पहले ही हासिल कर लिया गया है।इससे उम्मीद है कि भारत नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को भी समय से पहले ही हासिल कर लेगा ऐसी मुझे उम्मीद है ।

      

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Shivangi Pandey

Hii! I am Shivangi Pandey .I am a student of Hindi Journalism in Indian Institute of Mass Communication (New Delhi) . I have done my graduation in Physics from Delhi University