जलवायु में हो रहे तीव्र परिवर्तन ने हिमालय के मिजाज को भी बिगाड़ दिया है। हिमालय में हर साल हो रहे आपदाओं की घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी है। जोशीमठ में अचानक हुए भूंधसाव ने हिमालयी शहरों के असतित्व को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उत्तरखंड के पहाड़ों की गोद में बसा जोशीमठ अपनी नैसर्गिक सुदंरता, पर्यटन और धार्मिक स्थल के लिए प्रसिध्द है। नजदीक पड़ते चीन बॉर्डर इसे सुरक्षा के लिहाज से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बनाता है। हजारों की संख्या में पर्यटक यहाँ आते जिससे शहर का विकास बढ़ी तेजी से हुआ है। जोशीमठ की जनसंख्या भी लगातार बढ़ी है 2011 में जहाँ अबादी लगभग 48, 000 थी वह बढकर 2023 में 63, 000 के आसपास हो गयी है।
जोशीमठ में अचानक हुए भूधंसाव के मुख्य कारण वहाँ हुए बेतरतीब निर्माण, पानी का रिसाव, अस्थिर भूमि और ऊपरी मिट्टी के कटाव को बताया जा रहा है। वही विष्णुगाड-तपोवन जल विद्युत और हेलंग-मारवाड़ी बाईपास जैसे बड़ी परियाजनाओं को भी इसका कारण माना जा रहा है। जोशीमठ को लेकर आज से 50 वर्ष पूर्व 1976 में मिश्रा कमेटी ऐसी बड़ी आपदा को लेकर अगाह किया था इसके बावजूद सरकार बेपरवाह बनी रही। जोशीमठ के अलावा भी उत्तराखंड के 12 जिलों के 395 गाँव आपदाग्रस्त जोन घोषित है। वहीं कर्णप्रयाग, टिहरी, हर्षिल, गोचर और पिथौरगढ में भी घरों में दरार की खबरें सामने आई है। वहीं नैनीताल का बलिया नाला भी ऐसे ही खतरे से जूझ रहा है। अचानक अगर भूसख्लन, भूकंप या तेज वर्षा होती है तो ये पहाड़ ताश के पत्ते की तरह ढह जाएगें। हिमाचल के भी कई शहर ऐसी ही समस्या से जूझ रहें है।
इस समय आवश्यकता है कि वैज्ञानिकों द्वारा उत्तराखण्ड, हिमाचल जैसी पहाड़ी क्षेत्रों का मूल्यांकन किया जाए जिससे आगे आने वाली आपदाओं से निपटा जा सकें। साथ ही व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से शहरों को प्लान करने की आवश्यकता है। लगातार बढ़ रहे पर्यटन भार को भी कम करके आपदा रोधक निर्माण करने की जरूरत है तभी भविष्य में ऐसी घटनाओं की आशंका को कम किया जा सकता है।
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