हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले सुनाते हुए चुनावी बांड स्कीम के असंवैधानिक घोषित कर दिया है । इसे वर्ष 2018 में लागू किया गया था ।
चुनावी बांड किया है?
यह एक स्कीम है जिसके तहत देश का कोई भी व्यक्ति , संस्था और कंपनी बांड खरीद कर चुनाव में पैसे फंड कर सकता है। इसके माध्यम से राजनितिक पार्टीयों को पैसे देने की व्यवस्था लागू कि गयी । यह राजनितिक पार्टी को पैसे दिये जा सकते है जो कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 ( अ) के तहत पंजीकृत है और आम चुनाव या राज्य विधानसभा में 1 प्रतिशत वोट प्राप्त किए हैँ।
चुनावी बांड स्कीम को वित्त अधिनियम 2017 के तहत लाये गया था। जिसे जनवरी 2018 में लागू कर दिया गया था। इस स्कीम को लागू करने के लिए वित्त अधिनियम 2017 के तहत कई अन्य अधिनियम में संशोधन किया गया । जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, कंपनी अधिनियम 2013 और आयकर अधिनियम 1961 का धाराओं में संशोधन किए गए थे।
चुनावी बांड को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा ही जारी किया जाता है। केवाईसी के बाद ही चुनावी बांड दिया जाता है जिसमें देने वाले का नाम उजागर नहीं किया जाता था । जिसे 1000, 10,000 ,1 लाख , 10 लाख और 1 करोड़ के डिनोमिनेशन में ही खरीदा जा सकता है। बांड की वैधता केवल 15 दिनों की होती है । राजनितिक पार्टी को इसे 15 दिनों के भीतर ही एनकैश कराना होता है । ऐसा ना कराने पर यह राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा हो जाती है । इन पर टैक्स भी लागू नहीं होता है । बांड खरीदने वाले की पहचान एसबीआई द्वारा गुप्त रखी जाती है और इसकी जानकारी राजनितिक पार्टी और चुनाव आयोग नहीं दी जाती है। इस साल में 4 महीने में जनवरी , अप्रैल , जुलाई और अक्टूबर के 10 दिनों में खरीदना होता है। आम चुनाव के समय इस अवधि को बढ़ाया जाता है।
क्या है समस्याएं
चुनाव बांड से जुड़ी कई ऐसी कमियाँ है जिसे लेकर शुरुआत से ही विवाद हो रहा था । कई याचिकाकर्ताओं ने इस स्कीम को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की गयी। उनका कहना है कि यह स्कीम संविधान के मूल अधिकारों का हनन करता है । यह अनुच्छेद 19(1) () और सूचना का अधिकार का हनन करता है । यह पारदर्शी भी नहीं जिसका दावा सरकार द्वारा किया जा रहा था । इसमें एक बड़ी समस्या Quid pro quo की है जिसका अर्थ है कुछ के बदले कुछ । जब कोई भी व्यक्ति या कंपनी पैसे राजनीतिक पार्टी को देती है तो चाहती है कि सत्ता में आने में सरकारी नीतियों को इस तरह बनाए जो उन्हें लाभ दें लेकिन यह लोक हित को प्रभावित करता है।
वही सरकार का कहना है कि यह स्कीम चुनावी फंडिग में काले धन के प्रयोग पर अंकुश लगाना है ।साथ ही इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है। इसके तहत देने वाले व्यक्ति या कंपनी की पहचान को गुप्त रखने का मुख्या उद्देश्य उनके निजता के अधिकार का संरक्षण करना है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
प्रधान न्यायधीश की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच इन दलीलों को सुनते हुए चुनावी बांड को असंवैधानिक घोषित कर दिया । कहा कि यह स्कीम संविधान के मूल अधिकारों का हनन करता है इसलिए इसे पूरी तरह से रद्द कर दिया गया ।कोर्ट ने कहा कि जनप्रतिनिधत्व अधिनियम 1951 की धारा 29 (सी), कंपनी अधिनियम की धारा 182(3) और आयकर अधिनियम की धारा 13 ए (बी) अनुच्छेद 19(1) (अ) का हनन करता है । साथ ही कंपनी अधिनियम 182(1) अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है इसलिए इन सभी संशोधनों को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया । कोर्ट एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से अभी तक जितने भी चुनावी बांड जारी किये गये है उनकी जानकारी तीन हफ्तों मे 6 मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया है । चुनाव आयोग को इस जानकारी को एक हफ्ते में 13 मार्च 2024 तक अपनी अधिकारिक वेबासाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया है। हाल में जितने भी चुनावी बांड खरीदने गए है और एनकैश नहीं हुए उन्हें रिफंड करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा की चुनावी बांड स्कीम पारदर्शिता को सुनिश्चित नहीं करता है और सूचना के मूल अधिकार का भी उल्लंघन करता है इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित करते हुए केंद्र सरकार को अन्य विकल्प पर विचार करने का निर्देश दिया है।
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