पीरियड्स को लेकर बदलती धारणाएं – सवेतन अवकाश की उठती मांग

वुमन हेल्थ कंर्सन संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार 80 प्रतिशत महिलाओं को पीरियड दर्द का सामना करना पड़ता है। उसमें भी 5 से 10 प्रतिशत महिलाएं ऐसी होती है जिन्हें इतना तीव्र दर्द होता है कि उनका काम भी प्रभावित होता है। पीरियड में होने वाली समस्याओं में राहत देने के लिए ही सवेतन छुट्टी देने की बहस जारी है। इसका मुख्य उद्देश्य कामकाजी महिलाओं को पीरियड में आराम के लिए छुट्टी देना है।

  दिसंबर में राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज कुमार ने इससे जुड़ी नीति को लेकर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से सवाल किया । जिस के बाद  पीरियड में सवेतन छुट्टी देने का मुद्दा फिर से गरमा गया। स्मृति ईरानी ने कहा कि पीरियड कोई विकांगलता नहीं है । यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है । उन्होंने चिंता व्यक्त की कि सवेतन छुट्टी देने से कार्यस्थल में महिलाएं के प्रति भेदभाव बढ़ सकता है।

   यह पहली बार नहीं है जब इस पर बात हो रही है। वर्ष 2017 में कांग्रेस पार्टी के नेता और सांसद निनॉन्ग ने प्राइवेट बिल पेश किया था। इसे मेन्स्ट्रुएशन बेनिफिट बिल ,2017 नाम से पेश किया गया था। इसमें महिलाओं को पीरियड के दौरान 2 दिन का सवेतन अवकाश देने की बात कही गयी थी।

  मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो 13-55 वर्ष की महिलाओं को हर महीने होता है। इस दौरान उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आकड़ों के अनुसार 40 प्रतिशत महिलाओं को पीरियड में दर्द के साथ अन्य समस्याओं जैसे थकान , सूजन ,मूड में बदलाव , एकाग्रता की कमी आदि का सामना करना पड़ता है । इसी कारण यह मांग उठती रही है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को सवेतन अवकाश मिलना चाहिए जिससे वह बिना किसी झिझक के छुट्टी लेकर आराम कर सकें।  

     पीरियड्स में सवेतन छुट्टी के बारे में पूछने पर मीता (बदला हुआ नाम) जो कि आईआईअमसी मे गार्ड की ड्यूटी करती है कहती है कि पीरियड्स में ड्यूटी करनें में कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । कई बार तीव्र दर्द होने से लंबे समय तक काम नहीं कर पाते ऐसे में वह चाहती है कि सवेतन छुट्टी जैसी व्यवस्था लागू होनी चाहिए।

    वहीं प्रिया ( बदला हुआ नाम ) आईआईअमसी की छात्रा कहती है कि पीरियड लीव एक अच्छी पहल होगी लेकिन इसे लागू करना थोड़ा मुश्किल होगा । वह कहती है की पहले से लागू पेड लीव की सुविधा को बढ़ाया जा सकता है जिसे लड़कियां अपनी सुविधानुसार प्रयोग कर सकेँ।

 लेकिन कई सारी लड़कियों यह मानती है कि पीरियड के दौरान बहुत तीव्र दर्द होता है जिसमें चक्कर आदि भी आते हैँ। उनका ऑफिस जा कर काम करना थोड़ा मुश्किल होता है ऐसे में पीरियड पेड लीव की सुविधा लागू होना चाहिए।वहीं कुछ महिलाओं को पीरियड्स में अत्याधिक स्वास्थ्य समस्याएं नहीं भी होती है। इसलिए इस मुद्दे पर सभी वर्ग एकमत नहीं है ।

    हालांकि भारत के ही कुछ राज्यों में यह व्यवस्था पहले से लागू है। उदाहरण के लिए बिहार में यह नीति वर्ष 1992 में पेश की गयी थी । केरल में भी छात्राओं को मासिक धर्म में अवकाश लेने की सुविधा उपलब्ध है। भारत में जोमैटो ,स्विगी और बायजू जैसी प्राइवेट कंपनियों ने मासिक धर्म में सवेतन अवकाश की नीति लागू की है जो कि एक सराहनीय प्रयास है ।

   वही विश्व के कई देशों में भी यह नीति लागू है । इसके सबसे बड़े उदाहरण स्पेन ,जापान, इंडोनेशिया , फिलीपींस ,ताइवान ,दक्षिण कोरिया जैसे देश है । इन देशों में इस तरह की सुविधा होने के बाद भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है क्योंकि सभी महिलाएं इन छुट्टी का प्रयोग नहीं करती हैं। जापान की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1965 में 26 फीसदी महिलाओं ने पीरियड लीव ली लेकिन वर्ष 2017 में यह आकड़ा घटकर 0.9 प्रतिशत हो गया। यही हाल दक्षिण कोरिया का भी है वर्ष 2017 में केवल 19.7 फीसदी महीलाओं ने इन छुट्टीयों का प्रयोग किया है।इसका मुख्य कारण कार्य क्षेत्र में होने वाला भेदभाव का डर है।

    भारत में पीरियड को लेकर समाज में कई तरह की भ्रातियां है । कई दूर दराज के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को पैड जैसी मूल सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है।भारत में 40 फीसदी लड़कियां पीरियड्स के दौरान स्कूल ड्रॉप कर देती है। लगभग 65 प्रतिशत छात्राओं को इस दौरान असुविधा का सामना करना पड़ता है।     जब महिलाओं तक मूलभूत सुविधाएं ही नहीं पहुंच पा रही है ऐसे में सवेतन पीरियड लीव को लागू करना बड़ी चुनौती है। एनएफएचएस – 5 के आकड़ों के अनुसार 89.4 प्रतिशत शहरी महिलाएं (15-24 वर्ष ) ही स्वच्छ महावारी उत्पादों का प्रयोग करती है। वही 72.3 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं ही इन उत्पादों का प्रयोग करती है । इन आकड़ो से स्पष्ट है कि सबसे पहले किफायती सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है। कई स्कलों और कॉलोजों में आज भी सैनेटरी पैड की वेडिंग मशीन उपलब्ध नहीं है।

     दूसरी बड़ी चिंता यह है कि सवेतन  पीरियड छुट्टी की नीति से महिलाओं के आर्थिक अवसर घट जाएगें क्योंकि प्राइवेट कंपनियां इसे लागू करना नहीं चाहेगी। विश्व आर्थिक मंच के द्वारा जारी वैश्विक लिंग अंतर रिपोर्ट 2023 के अनुसार भारत 146 देशों में से 127वां स्थान प्राप्त किया है जो कि वर्ष 2022 में 135वें स्थान पर था। वेतन समानता में कुछ सुधार हुआ है लेकिन उच्च पदों और तकनीकी क्षेत्रों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में गिरावट दर्ज हुई है। आर्थिक भागीदारी में स्थिति और भी चिंताजनक है क्योंकि भारत की रैंकिग 146 देशों में से 143वें स्थान पर है । ऐसे में यह चिंता की सवेतन पीरियड्स लीव लागू करने से महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरें में कमी होगी लाजमी है ।

  भारत में पीरियड लीव को लेकर बात हो रही है यह एक सकरात्मक बात है लेकिन इससे पहले समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक मानसिकता में बदलाव लाना बहुत ज्यादा जरूरी है। सबसे पहली प्राथमिकता लड़कियों को सस्ते सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है। सवेतन अवकाश की नीति लागू होना चाहिए । कार्यस्थल  में ऐसा माहौल बनाने की जरुरत है जिससे महिलाएं खुलकर इन छुट्टी का उपयोग कर सकें । साथ ही अन्य विकल्प जैसे कि वर्क फ्रॉम होम जैसी लचीली कार्यप्रणाली अपनायी जा सकती है। जब तक समाज में जागरूकता नहीं आएगी इस नीति को प्रभावी रुप से लागू करना कठिन काम होगा । अन्य देशों में यह नीति लागू है तो भारत में भी इसे लागू किया जा सकता है ।बदलते समय के साथ इस तरह की प्रगतिशील नीति लागू करना महिलाओं को बराबरी का हक दिलाएगा।

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Shivangi Pandey

Hii! I am Shivangi Pandey .I am a student of Hindi Journalism in Indian Institute of Mass Communication (New Delhi) . I have done my graduation in Physics from Delhi University